
पूर्वी UP की ‘बिटिया’ प्रियंका गांधी बदल सकेगी कांग्रेस की किस्मत?
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव के तौर पर बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को उतारकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिन्दी हृदय प्रदेश की लड़ाई में बड़ा दांव खेला है. यह जितना नाटकीय है उतना ही रणनीतिक भी.
नाटकीय इसलिए है क्योंकि यह पहल 2019 के आम चुनाव के एन वक्त पर तब की गयी है जब 100 दिन भी बाकी नहीं रह गये हैं. यह रणनीतिक कदम इसलिए है क्योंकि आंशिक तौर पर ही सही, इसमें न सिर्फ एसपी-बीएसपी का गणित गड़बड़ाने की क्षमता है बल्कि अमित शाह की 80 में से 74 सीटें जीतने के दम्भ का दम भी यह निकाल सकती है.
यह बीजेपी के रणबांकुरों की धरती है. नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र यहीं पड़ता है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से पांच बार लोकसभा का चुनाव जीता है और, अमित शाह ने इस इलाके में धुआंधार समय बिताया है जहां उन्होंने राज्य की जातीय पेचीदगियों का अध्ययन किया. इसी ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में और फिर तीन साल बाद 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए चौंकाने वाली जीत हासिल की.
चुनाव अभियान से तस्वीर बदल देने की प्रियंका की क्षमता पर संदेह नहीं होना चाहिए. पहली बार उन्होंने 1998 में अपनी दक्षता दिखलायी, जब उन्होंने सुषमा स्वराज की नाक के नीचे से वेल्लारी सीट चुरा ली थी और अपनी मां सोनिया गांधी को पहली बार संसद पहुंचाने में मदद की.
फिर 1999 में प्रियंका ने जनता दल के अरुण नेहरू को रातों-रात अपने भावनात्मक अभियान के जरिए रायबरेली में पस्त कर दिया. तब पिता की पीठ पर चाकू घोंपने का आरोप उन्होंने अपने चाचा पर लगाया था. उन्होंने मतदाताओं से पूछा था, “क्या आप एक धोखेबाज को चुनना चाहते हैं?” और, प्रियंका की भावनात्मक आह्वान की पीठ पर सवार होकर कांग्रेस उम्मीदवार सतीश शर्मा चुनाव जीत गये.